मुंसिफ़
लफ़्ज़ों के साथ इंसाफ़ करने की अदद कोशिश...
Saturday, 31 August 2013
Sunday, 25 August 2013
संविधान और कानून सबको एक बराबर मानता हैं। पुरुष हो या स्त्री कपड़े दोनों को शालीन पहनने चाहिये लेकिन कम कपड़ो की परिभाषा क्या होती हैं मुझे आज तक नहीं समझ आया। अगर टी शर्ट , जींस , शॉर्ट्स लड़कियों के लिये नहीं हैं तो उनको परिधान के रूप में इस देश के कानून से बेन करवा दे , ना लड़का पहने ना लड़की . संविधान बनाते समय इस बात को ध्यान में क्यूँ नहीं रखा की भारत में महिला भी रहती हैं जिनको क्या पहनना हैं इसका फैसला जनता , नेता और मोरल पुलिस करती हैं। कम से कम उनको संविधान में एक पूरा अध्याय इस पर लिखना चाहिये था की कपड़ो में क्या और कितना लम्बा होना चाहिए किस उम्र की स्त्री को क्या पहनना चाहिये।
सिर्फ यही करण देना पर्याप्त नहीं होगा ज़रुरत आज की सोच को बदलने की बात लड़कियों को समझाने की नहीं हैं क्यूंकि सदियों से लडकियां पर्दे में रही हैं और फिर भी वेश्या , विधवा , देव दासी और अनगिनत रूपों में उनका यौन शोषण हुआ हैं।
हमें अपनी सोच और नजरिया बदलना होगा और यह सब अब बातों या सुझाबों से नहीं बदला जा सकता ज़रुरत कानून मैं संसोधन की है कानून में बदलाब आना चाहियें सिर्फ कानून का डर और ऐसे मामलों का जल्दी से जल्दी सुनवाई हो कर फैसलें दिए जाने से ही कुछ सुधार हो सकता है फांसी या उम्र कैद से कम सज़ा नहीं होना चाइये सिर्फ सजा खौंफ ही इसे ख़तम कर सकता है
सिर्फ यही करण देना पर्याप्त नहीं होगा ज़रुरत आज की सोच को बदलने की बात लड़कियों को समझाने की नहीं हैं क्यूंकि सदियों से लडकियां पर्दे में रही हैं और फिर भी वेश्या , विधवा , देव दासी और अनगिनत रूपों में उनका यौन शोषण हुआ हैं।
हमें अपनी सोच और नजरिया बदलना होगा और यह सब अब बातों या सुझाबों से नहीं बदला जा सकता ज़रुरत कानून मैं संसोधन की है कानून में बदलाब आना चाहियें सिर्फ कानून का डर और ऐसे मामलों का जल्दी से जल्दी सुनवाई हो कर फैसलें दिए जाने से ही कुछ सुधार हो सकता है फांसी या उम्र कैद से कम सज़ा नहीं होना चाइये सिर्फ सजा खौंफ ही इसे ख़तम कर सकता है
Wednesday, 14 August 2013
सुना है हम आज़ाद हैं सुना है हम आज़ाद हैं
हर तरफ भ्रष्टाचार है फैला पर हम आज़ाद हैं
बेटियाँ डर डर के निकले पर हम आज़ाद हैं
बेटी , बेटे का भेद अभी भी पर हम आज़ाद हैं
अपराधी निडर होकर निकले पर हम आज़ाद हैं
किसान आत्महत्या करते पर हम आज़ाद
नशाखोरी अज्ञानता है फैली पर हम आज़ाद हैं
धर्म के नाम पर हिंसा होती पर हम आज़ाद हैं
आज़ाद आज़ाद आज़ाद आज़ाद आज़ाद हैं
हर तरफ भ्रष्टाचार है फैला पर हम आज़ाद हैं
बेटियाँ डर डर के निकले पर हम आज़ाद हैं
बेटी , बेटे का भेद अभी भी पर हम आज़ाद हैं
अपराधी निडर होकर निकले पर हम आज़ाद हैं
किसान आत्महत्या करते पर हम आज़ाद
नशाखोरी अज्ञानता है फैली पर हम आज़ाद हैं
धर्म के नाम पर हिंसा होती पर हम आज़ाद हैं
आज़ाद आज़ाद आज़ाद आज़ाद आज़ाद हैं
Sunday, 11 August 2013
कशमकश
आज कुछ उदास सा था मंजरी का मन न जाने किस सोच में वो डूब गयी थी पल भर मैं वो अतीत की उन यादों मैं पहुँच गयी थी जो अचानक आज उसके सामने लाखों पर्दों को हटा कर सामने आ गयी थी और वो खुद को उनमें कहीं उलझा बैठी थी कशमकश मैं थी की वो अभिमन्यु को फ़ोन करे या नहीं करे उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था ,अभिमन्यु जिसे उसने सलॊ पहले भुला दिया था आज वो उसके सामने हजारों सवाल लिए खडा था क्या दोष था उसका सिर्फ इतना उसने सबसे अलग जाकर मंजरी के लिए सोंचा उसके सपनो को उड़ान और उसके सुने मन मे हजारों रंग भरना चाहता था बस इतना सा तो गुनहा किया था उसने फिर मंजरी ने उसका साथ क्यों छोड़ दिया क्यों उसे अकेला करके वो दूर चली गयी क्यों उसने कभी याद नहीं किया क्यों वो क्या जवाब दे उसे उसके इतने सारे और अनगिनत सवालों का
वो चाय का प्याला लिए लगातार सोचे जा रही थी आंखों में लाली थी शायद वो इसी कशमकश मैं जागती रही थी और पता नहीं कब रात गयी और दिन निकल आया वो यही सोचे जा रही थी जिस बात और सवाल को वह टालती आयी थी अब वो फिर ज़िंदा अपने वजूद को लिये सामने खडा है और वो कितना भागेगी उसने शायद हार मान ली और निशचय किया वो उन सरे सवालों का जवाब देकर शायाद सुकून से सो सकेगी जाने कितनी रातें उसने करवट बदल कर कटी हैं और यह सोचकर उसके चेहरे पर एक सुकून सा देखाई देने लगा और उसने फ़ोन पर बात करके अभिमन्यु से मिलने का टाइम तये किया वो सामने बैठकर हर सवाल और हर बात का जवाब देना चाहती थी अभिमन्यु ने शाम ६ बजे मिलने का टाइम दिया था वो अपने ऑफिस गयी और आधे दिन की छुट्टी लेकर वापस आ गयी फिर वो सोचने लगी कौन से ड्रेस पहन कर जायेगी और इसे उधेड़ बुन मैं उसने सारे कपडे कमरे मैं इधर से उधर बिखरा दिए थे और उसे समझ नहीं आ रहा था वो क्या पहने तभी उसे याद आया अभिमन्यु को फीके रंग पसंद नहीं थे उसे वो कलर पसंद थे जो ब्राइट हों और जिनमें ज़िन्दगी मुस्कुराती नज़रआती हो , मंजरी ने गहरे नीले रंग के साड़ी पहनी और उसी से मैच की बिंदी लगाई और हाथों मैं वही अपने गोल्ड के कंगन पहन लिए आज वो बहुत ख़ूबसूरत लग रही थी शायद वो आज सालों बाद अपने लिए सजी सबरी है वरना रोज़ के तरह जो कपड़ा हाथ आया वो ही पहन कर ऑफिस भाग जाती थी अपने लिए जैसे जीना ही भूल चुकी थी अभिमन्यु के साथ साथ उसने अपने लिए जीना भी छोड़ दिया था आज सालो बाद वो वही मंजरी बन गयी जो सपनो और रंगों से प्यार करती थी उडती हुए तितलियों के पीछे भागना जिसे पसंद था जो हमेशा कुछ न कुछ गुनगुनाती रहती थी मौसम के साथ वो खुद से भी बहुत प्यार करती थी आज मंजरी को लगा जैसे फिर वो उन्ही दिनों मैं आकर खडी हो गयी है जहाँ वो बहुत खुश और जिंदादिल जिंदगी जिया करती थी .
आज वक़्त जैसे थम सा गया था बहुत धीरे चल रहा था मंजरी कब की तैयार हो कर बैठी थी फिर उसने चाय बनाई और पीने लगी वो बार बार अपनी कलाई मैं बंधी घड़ी को देखे जा रही थी वक़्त की कट नहीं रहा था फिर वो जल्दी घर से निकल गयी ऑटो लिया और गिफ्ट शॉप मैं चली गयी कितने दिनों के बाद अभिमन्यु से मिल रही थी तो गिफ्ट तो लेना ही था उसने एक महरून से कलर के शर्ट अभिमन्यु के लिए खरीदी और सोचने लगी उसे बहुत पसंद आयेगी वो ब्राइट से रंग ही पहनता है और बहुत खुश हो गयी कुछ चॉकलेट्स भी उसने उसके लिए ली और फिर पहले से तय कॉफ़ी केफे मैं जाकर अभिमन्यु का इंतज़ार करने लगी
जाकर उसने कॉफ़ी आर्डर कर दी दो प्याले कॉफ़ी पी चुकी थी पर अब तक अभिमन्यु नहीं आया था और वहां बैठे लोग लगातार उसे घूरे जा रही थे वो इधर उधर देख कर अपना टाइम पासकर रही थी अचानक उसने देखा कोई सफ़ेद कुर्ते पायजामें में आ रहा है
अस्त व्यस्त सा लग रहा था दाडी बड़ी हुई थी नज़र का चश्मा पहन रखा था उसे कहीं देखा देखा लगा उसने फिर मुहं गुमा लिया और फ्लावर पॉट को देखने लगी कोई तेजी से उसकी तरफ आता महसूस हुआ सर उठा कर देखा तो वही अभिमन्यु निकला कुछ पल उसे टकटकी बंधे निहारती चली गयी कितना बदल गया था
अभिमन्यु ने मंजरी को देखा और बहुत नाराजगी भरा हेल्लो बोला मंजरी ने जवाब दिया और उसे बैठने कहा मंजरी अपनी नज़रें बचा कर लगातार अभिमन्यु की तरफ देखे जा रही थी मनो उसकी नज़रें यकीन नहीं कर पा रही हो यह वही अभिमन्यु है जो एक ज़माने मैं बहुत आकर्षक हुआ करता था आज बहुत थका और ज़िन्दगी से हारा हुआ नज़र आ रहा था मंजरी उसे देख कर बहुत उदास सी हो गयी और उसने दो कप कॉफ़ी का आर्डर दिया अभिमन्यु शायद आज भी उसे नाराज़ था उसकी नाराजगी सामने नज़र आ रही थी उसने एक सिगरेट और लाईटर से उसे सुलगाया और धुयें के लच्छे हवा मैं उड़ने लगा मनो मंजरी का चेहरा ढकना चहाता था धुएँ के आढ़ मैं मंजरी को खांसी आने लगी उसे सिगरेट का धुयाँ पसंद नहीं था उसने बोल इसे बुझा दो मुझे अच्छी नहीं लगती अभिमन्यु ने जवाब दिया आज तक तुम्हारी मर्जी से ही तो चलता आ रहा हूँ तुम्हे क्या पता कितना साथ दिया है इसने मेरा अगर यह न साथ देती तो अपना अकेलापन और तनहाई किस से बांटता तुम तो चली गयी बिना मुड कर देखे किस हाल मैं जी रहा हूँ उसकी शिकायतें शायद शुरू हो चुकी थी मंजरी ने पल भर को उसकी आँखों मैं झाँका और यादों केसफ़र मैं उसकी साथ चाली गयी .
मंजरी अपनी यादों मैं आकर खडी हो गयी थी वो अपने घर मैं सबसे छोटी थी सबसे बड़ा भाई था जिसकी शादी हो चुकी थी और वो अपने फॅमिली के साथ पुणे मैं रहता था एक प्यारी सी बिटिया थी और उसकी वाइफ साथ विप्रो मैं जॉब करती थी एक बड़ी बहेन थी जिसकी शादी हो चुकी थी और उसके एक बेटा था मंजरी बहुत खुश मिजाज़ लडकी थी अभिमन्यु उसकी सहेली का ममेरा भाई था वो उसके घर आता जाता रहता था उपासना का आज बर्थडे था मंजरी वहां गयी थी सब बर्थडे पार्टी एन्जॉय कर रहे थे तभी अभिमन्यु आ गया वैसे कोई जयदा परिचय नहीं था मंजरी का उसके साथ उपासना ने उसे मंजरी से मिलवाया और कहा भैया यह मेरी सबसे अच्छे सहेली है अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए हेल्लो कहाँ और दोनों एक दुसरे की फॅमिली के बारे मैं पूछने लगे पहली बार मिले थे तो शायद उन दोनों के पास जैसे शब्द ही नहीं थे एक दूसरे से बात करने के और दोनों छुप छुप के एक दुसरे की नज़रें चुराए एक दूसरे को देखे जा रहे थे फिर उपासना ने अभिमन्यु से गाना सुनने का आग्रह किया और अभिमन्यु ने गिटार लाने को कहा माहूल बहुत खुशनुमा सा हो गया था क्युकी सभी को बताया गया था अभिमन्यु बहुत अच्चा गाता है
अभिमन्यु नी गाना गाना शुरू किया तो मनो महॊल जैसे थम सा गया वक़्त वहीँ रुक सा गया था मंजरी मुस्कुरा कर अभिमन्यु को देखे जा रही थी कभीकभी जब दोनो की नज़रें मिलती थी मंजरी को कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था और वो बहुत खुश थी उसे समझ नहीं आ रहा था आखिर आज उसे हो क्या गया है सब कुछ इतना ख़ूबसूरत क्यों लग रहा है सभी ने कुछ न कुछ सुनाया समा जैसे बांध सा गया था मंजरी ने अपने एक कविता सुनायी जो अभिमन्यु को बहुत पसंद आयी उसने चुपके से मंजरी से कहा बहुत खुबसूरत आप लिखती है अपनी आँखों की तरहा तभी अचानक फ़ोन के गंटी बजी और मंजरी की मम्मी का फ़ोन आया बहुत देर हो गयी है जल्दी घर आ जाना मंजरी ने घड़ी देखी ग्यारह बज चुके थे उसने उपासना से कहा और जल्दी से अपनी प्लेट मैं खाना लगाया मंजरी ने खाना खाया और घर जाने के लिए उपासना को कहा उपासना ने कहा भैया छोड़ आयेंगे और अभिमन्यु से जाने के लिए कहा दोनों पैदल पैदल घर के लिए निकल पडे अभिमन्यु बहुत बात करता था वो कुछ न कुछ पूछे जा रहा था और मंजरी तेज क़दमों से अपने घर आने का इंतज़ार कर रही थी मंजरी का घर आ गया और उसने कहा मेरा घर वो सामने वाला है पीले रंग का अभिमन्यु ने कहा फिर तो बहुत करीब है और मुस्कुराने लगा मंजरी ने घर का दरवाजा खटखटाया और सामने उसकी माँ थी उसने अभिमन्यु का परिचय करवाया यह उपासना का भाई है माँ ने उसे भीतर आने के लिए कहा पर उसने फिर कभी कहा कर नमस्ते कर ली मंजरी ने उसे धन्यवाद कहा और बई बोल कर घर के अन्दर आ गयी
आज वो बहुत खुश थी और कुशी का करण नहीं समझ पा रही थी बार बार उसके आँखों के सामने अभिमन्यु का मुस्कुराता सा चेहरा घूम रहा था , पहली बार में ही उसे वो पसंद आ गया था , ऐसा ही कुछ हाल वहां अभिमन्यु का भी था ,यही सोचते सोचते पता नहीं कब मंजरी के आंख लग गयी और सो सो गयी ,देखा सुबहा हो चुकी है वो जल्दी जल्दी उठी घडी देखी टाइम बहुत हो चुका था क्लास के लिए लेट हो रही थी जल्दी जल्दी तैयार हुए तब तक उपासना आ चुकी थी उसने आवाज़ दी मंजरी क्लास के लिये देर हो रही है मंजरी ने कहां हाँ बस आ गयी और फिर दोनों बातें करती हुए अपनी यूनिवर्सिटी के क्लास के लिए चल दी रास्ते मे उपासना ने बताया अभिमन्यु भैया तेरी बहुत तारीफ कर रहे थॆ काश तू मेरी भाभी बन जाये मंजरी ने पागल है क्या कह कर मुस्कुरा दिया
मंज़री बाजार के लिए जा रही थी अचानक से उसने सामने से अभिमन्यु को आते देखा पहले सोचा हेल्लो बोल दूं पर नहीं बोल पाई इतने मैं अभिमन्यु सामने आ गया और उसके हेल्लो मंजरी बोल दिया उसने जबाब दिया हेल्लो और चलने लगी अभिमन्यु भी उसकेसाथ साथ चलने लगा ,मंजरी को समझ नहीं आ राहा था क्या करे , तभी खमोशी तोडते हुए अभिमन्यु ने कहा मुझे तुम बहुत अच्छी लगी हो क्या तुम मेरे दोस्त बनोगी मंज़री ने पलभर सोचा और हाँ कर दी दोनों एक रेस्टोरेंट मैं गयॆ और कॉफ़ी पीते पीते बहुत सारी बातें की -बातें मनो ख़तम ही होने को नहीं आ रही थी ,चलते चलते अभिमन्यु ने अपना मोबाइल नो मंज़री को दिया ,फिर धीरे धीरे बातों का सिलसिला चलने लगा और दोनों अपने -अपने घर वापस आ गयॆ .
अभिमन्यु को मंजरी ने रिंग कर अपना मोबाइल नो दिया पलट कर अभिमन्यु फ़ोन आ गया हेल्लो करते ही ढेर सारी बातों का सिलसिला शुरू खो गया , दोनों रोज़ बहुत सारी बातें किया करते थे और उन बातों का कभी अंत नहीं होता था , छोटी -छोटी बात एक दुसरे को बताना और अपने सपनो के घर की बातें दोनों अपनी आँखों में सजाने लगे देखते ही देखते यह रिश्ता इतना मजबूत हो गया जो कभी टूट नहीं सकता था ..
तभी अचानक से वक़्त ने करवट ली अभिमन्यु की जॉब लग गयी थी और उसे मुंबई जाना पडा फिर भी जब टाइम मिलता दोनों बहुत सारी बातें करते थे दूरी ने उनकी चाहत को और भी घहरा बना दिया दोनों जन्मो जन्मो तक साथ निभाने की बात करते थे .
अचानक से वक़्त ने करवट बदली मंज़री की बड़ी बहेन की एक कार दुर्घटना मैं मृत्यु हो गयी उसका एक साल का छोटा सा मासूम बेटा था , कुछ वक़्त मंज़री उसे अपने साथ ले आयी उसका ख़याल रखने लगी और अभिमन्यु को फ़ोन करना कम कर दिया पूरा दिन वो मानव की देख भाल मैं निकला देती थी मानव अपने माँ को याद करके बहुत रोता था , धीरे धीरे वह मंज़री के करीब आ गया और दोनों एक दुसरे के साथ खुश रहते थे मंज़री अभिमन्यु को फ़ोन करने का सोच कर भूल जाती थी धीरे धीरे अब दोनों के बीच झगडे शुरू हो गए
अभिमन्यु समझ नहीं पा रहा था आखिर क्या करे दूर रहकर उसे नहीं पता था की अचानक से ऐसा क्या हो गया क्यों मंज़री अब पहले के तरहा उसे बात नहीं करती जब ज्यदा परेशान होने लगा तो वो छुट्टी लेकर मंजरी से मिलने आ गया पर मंजरी मानव को लेकर उसके पिता के पास गयी थी उनके तबियात अचानक से ख़राब हो गयी थी और उनका मानव से मिलने का बहुत मन था , मंज़री निकली ही थी की अभिमन्यु उसके घर आ गया उसने भीतर आकर मंज़री की माँ से नमस्ते की और सामने पडी कुर्सी पर बैठ गया और मंज़री के बारे में पूछने लगा मंजरी के पिता जी भी आ गए दोनों अभिमन्यु से बात करने लगे इसी बीच उन्होंने मंज़री की बहेन की दुर्घटना की बात की और उसे बताया उन दोनों ने मंज़री के शादी उसके जीजा जी के साथ तय कर दी है , अभिमन्यु के सारे सपने जैसे टूट गयॆ वो बुझे मनं से बाहर चला गया और मंज़री पर गुस्सा होने लगा क्यों उसने उसे नहीं बताया इतना बड़ा फैसला उसने बिना उसे बताये कर लिया और वो वापस उसी दिन मुंबई चला गया ,
मंजरी ने वापस आकर जब यह जाना अभिमन्यु आया था उसने तुरंत उसका फ़ोन मिलाया पर अभिमन्यु ने फ़ोन उठा कर उससे अपने सरॆ रिश्ते ख़तम हों आज से बोल दिया मंज़री को समझ नहीं आया वो अपने कमरे मैं चली गयी और रोने लगी उसका दिल ही टूट गया उसने कभी सोचा भी नहीं था के ऐसा मोड़ भी आ सकता है दोनों की प्रेम कहानी में
मंज़री रोज़ रोज़ अभिमन्यु को फ़ोन करती थी और वो उससे कभी बात नहीं करता था ऐसे ही टाइम गुजरता चला गया और मंज़री मानव देखभाल करने मैं व्यस्थ होती चली गयी
जाए और अपने जीजा जी से विवहा कर ले मंज़री यह सब सुन कर बस खडी रह गयी उसे समझ नहीं आया यह क्या कह दिया उसके पिता ने उसके सरे सपने जैसे आँखों के सामने टूट ते नज़र आ रहे थे ,वो किसी को कुछ बताये भी तो क्या अभिमन्यु तो इतना बेरुखा सा व्यबहार कर रहा था
मंज़री के पिता के तबियत बिगडती जा रही थी मंज़री ने पल भर को मानव को देखा और हाँ कर दी अपने दिल मैं सारी ख्वाहिशों और सपनो को मार दिया अब वो किसी और की पत्नी और माँ बन चुकी थी और अपनी ही बहेन के घर शादी करके आ चुकी थी
अर्जुन ने मंज़री को कभी अपनी पत्नी के रूप मैं कभी नहीं अपनाया एक दिन अचानक अर्जुन की हार्ट अटैक से चल बसा और मानव की ज़िम्मेदारी पूरी तरहा से मंज़री कन्धे पर आ पडी उसने अर्जुन के स्थान पर ज्वाइन कर लिया और मानव की देखभाल करने लगी और खुद को भूल सी गयी , मानव भी उसे बहुत प्यार करता था पर उसे उसकी माँ के ख़ामोशी जो मंज़री ने कभी नहीं बताई नज़र आने लगी वो अक्सर अपनी माँ बहुत सारे सवाल पूछता था पर मंज़री कुछ जवाब नहीं देती थी हाँ कभी कभी अपनी नम आँखों को जरूर पोंछती थी , बताती भी तो क्या पता नहीं कहाँ अभिमन्यु होगा और फिर उसने शादी कर ली थी तो अब किस अधिकार से अभिमन्यु को मिलती या बात करती ./
मानव अपनी माँ के अनकही सी ख़ामोशी को अब समझने लग गया था वो सत्रहा बरस का था और अपने उम्र सेबहुत समझदार और बहुत होनहार बच्चा था , उसने मंजरी के जाने के बाद उसके सामन की छानबीन शुरू कर दी अचानक से उसे एक दबी हुई डायरी नज़र आयी उसने निकल कर पढ़ना शुरू किया और उसकी आँखों से आँशु लगातार वहे जा रहे थॆ उसे अपनी माँ के ख़ामोशी का राज़ पता चल चुका था उसके दिल में अपनी माँ का स्थान बहुत उचा हो गया था
मानव ने उपासना का नंबर निकला और मिला कर सारी बात बताई और अभिमन्यु का नंबर लिया , और खुद ही चुपचाप से ,मंज़री के नंबर मिस्ड कॉल दी उधर से अभिमन्यु ने नंबर मिलाया तो पल भर मैं मंज़री की आवाज़ सुन कर थम सा गया था एक खुशी भी थी और एक गुस्सा भी था पर प्यार अभी भी कम नहीं हुआ था ,वो दोनों केदिल मैं आज भी वैसे ही ज़िंदा था , मज़री मायुस सी अभिमन्यु से मिलकर जाने लगी थी , इतने मैं सामने से मानव आया और उसने अपनी माँ का हाथ थम कर कहा बहुत भाग लिए आप दोनों एक दूसरे से अब और नहीं मंज़री भीगी आँखों से मानव को देखे जा रही थी उसका छोटा सा बेटा इतना बड़ा हो गया था ,उसने अभिमन्यु की सारी नाराज़गी दूर कर दी थी ,अभिमन्यु की आँखों से आंशू लगातार बहे जा रहे थे ,उसने मंज़री की बात क्यों नहीं सूनी क्यों वो अपने कश्मकश मैं उलझा रहा क्यों नहीं उसने वापस आकर मिलने की कोशिश कि ,मंज़री की भीगी आँखों को पोछते हुए अभिमन्यु ने गले से लगा लिया मंज़री और मानव को और तीनो रोने लगे और मंज़री की कशमकश का अंत हो चुका था ,तीनो मुस्कुराते हुए घर की तरफ निकल पड़े
वो चाय का प्याला लिए लगातार सोचे जा रही थी आंखों में लाली थी शायद वो इसी कशमकश मैं जागती रही थी और पता नहीं कब रात गयी और दिन निकल आया वो यही सोचे जा रही थी जिस बात और सवाल को वह टालती आयी थी अब वो फिर ज़िंदा अपने वजूद को लिये सामने खडा है और वो कितना भागेगी उसने शायद हार मान ली और निशचय किया वो उन सरे सवालों का जवाब देकर शायाद सुकून से सो सकेगी जाने कितनी रातें उसने करवट बदल कर कटी हैं और यह सोचकर उसके चेहरे पर एक सुकून सा देखाई देने लगा और उसने फ़ोन पर बात करके अभिमन्यु से मिलने का टाइम तये किया वो सामने बैठकर हर सवाल और हर बात का जवाब देना चाहती थी अभिमन्यु ने शाम ६ बजे मिलने का टाइम दिया था वो अपने ऑफिस गयी और आधे दिन की छुट्टी लेकर वापस आ गयी फिर वो सोचने लगी कौन से ड्रेस पहन कर जायेगी और इसे उधेड़ बुन मैं उसने सारे कपडे कमरे मैं इधर से उधर बिखरा दिए थे और उसे समझ नहीं आ रहा था वो क्या पहने तभी उसे याद आया अभिमन्यु को फीके रंग पसंद नहीं थे उसे वो कलर पसंद थे जो ब्राइट हों और जिनमें ज़िन्दगी मुस्कुराती नज़रआती हो , मंजरी ने गहरे नीले रंग के साड़ी पहनी और उसी से मैच की बिंदी लगाई और हाथों मैं वही अपने गोल्ड के कंगन पहन लिए आज वो बहुत ख़ूबसूरत लग रही थी शायद वो आज सालों बाद अपने लिए सजी सबरी है वरना रोज़ के तरह जो कपड़ा हाथ आया वो ही पहन कर ऑफिस भाग जाती थी अपने लिए जैसे जीना ही भूल चुकी थी अभिमन्यु के साथ साथ उसने अपने लिए जीना भी छोड़ दिया था आज सालो बाद वो वही मंजरी बन गयी जो सपनो और रंगों से प्यार करती थी उडती हुए तितलियों के पीछे भागना जिसे पसंद था जो हमेशा कुछ न कुछ गुनगुनाती रहती थी मौसम के साथ वो खुद से भी बहुत प्यार करती थी आज मंजरी को लगा जैसे फिर वो उन्ही दिनों मैं आकर खडी हो गयी है जहाँ वो बहुत खुश और जिंदादिल जिंदगी जिया करती थी .
आज वक़्त जैसे थम सा गया था बहुत धीरे चल रहा था मंजरी कब की तैयार हो कर बैठी थी फिर उसने चाय बनाई और पीने लगी वो बार बार अपनी कलाई मैं बंधी घड़ी को देखे जा रही थी वक़्त की कट नहीं रहा था फिर वो जल्दी घर से निकल गयी ऑटो लिया और गिफ्ट शॉप मैं चली गयी कितने दिनों के बाद अभिमन्यु से मिल रही थी तो गिफ्ट तो लेना ही था उसने एक महरून से कलर के शर्ट अभिमन्यु के लिए खरीदी और सोचने लगी उसे बहुत पसंद आयेगी वो ब्राइट से रंग ही पहनता है और बहुत खुश हो गयी कुछ चॉकलेट्स भी उसने उसके लिए ली और फिर पहले से तय कॉफ़ी केफे मैं जाकर अभिमन्यु का इंतज़ार करने लगी
जाकर उसने कॉफ़ी आर्डर कर दी दो प्याले कॉफ़ी पी चुकी थी पर अब तक अभिमन्यु नहीं आया था और वहां बैठे लोग लगातार उसे घूरे जा रही थे वो इधर उधर देख कर अपना टाइम पासकर रही थी अचानक उसने देखा कोई सफ़ेद कुर्ते पायजामें में आ रहा है
अस्त व्यस्त सा लग रहा था दाडी बड़ी हुई थी नज़र का चश्मा पहन रखा था उसे कहीं देखा देखा लगा उसने फिर मुहं गुमा लिया और फ्लावर पॉट को देखने लगी कोई तेजी से उसकी तरफ आता महसूस हुआ सर उठा कर देखा तो वही अभिमन्यु निकला कुछ पल उसे टकटकी बंधे निहारती चली गयी कितना बदल गया था
अभिमन्यु ने मंजरी को देखा और बहुत नाराजगी भरा हेल्लो बोला मंजरी ने जवाब दिया और उसे बैठने कहा मंजरी अपनी नज़रें बचा कर लगातार अभिमन्यु की तरफ देखे जा रही थी मनो उसकी नज़रें यकीन नहीं कर पा रही हो यह वही अभिमन्यु है जो एक ज़माने मैं बहुत आकर्षक हुआ करता था आज बहुत थका और ज़िन्दगी से हारा हुआ नज़र आ रहा था मंजरी उसे देख कर बहुत उदास सी हो गयी और उसने दो कप कॉफ़ी का आर्डर दिया अभिमन्यु शायद आज भी उसे नाराज़ था उसकी नाराजगी सामने नज़र आ रही थी उसने एक सिगरेट और लाईटर से उसे सुलगाया और धुयें के लच्छे हवा मैं उड़ने लगा मनो मंजरी का चेहरा ढकना चहाता था धुएँ के आढ़ मैं मंजरी को खांसी आने लगी उसे सिगरेट का धुयाँ पसंद नहीं था उसने बोल इसे बुझा दो मुझे अच्छी नहीं लगती अभिमन्यु ने जवाब दिया आज तक तुम्हारी मर्जी से ही तो चलता आ रहा हूँ तुम्हे क्या पता कितना साथ दिया है इसने मेरा अगर यह न साथ देती तो अपना अकेलापन और तनहाई किस से बांटता तुम तो चली गयी बिना मुड कर देखे किस हाल मैं जी रहा हूँ उसकी शिकायतें शायद शुरू हो चुकी थी मंजरी ने पल भर को उसकी आँखों मैं झाँका और यादों केसफ़र मैं उसकी साथ चाली गयी .
मंजरी अपनी यादों मैं आकर खडी हो गयी थी वो अपने घर मैं सबसे छोटी थी सबसे बड़ा भाई था जिसकी शादी हो चुकी थी और वो अपने फॅमिली के साथ पुणे मैं रहता था एक प्यारी सी बिटिया थी और उसकी वाइफ साथ विप्रो मैं जॉब करती थी एक बड़ी बहेन थी जिसकी शादी हो चुकी थी और उसके एक बेटा था मंजरी बहुत खुश मिजाज़ लडकी थी अभिमन्यु उसकी सहेली का ममेरा भाई था वो उसके घर आता जाता रहता था उपासना का आज बर्थडे था मंजरी वहां गयी थी सब बर्थडे पार्टी एन्जॉय कर रहे थे तभी अभिमन्यु आ गया वैसे कोई जयदा परिचय नहीं था मंजरी का उसके साथ उपासना ने उसे मंजरी से मिलवाया और कहा भैया यह मेरी सबसे अच्छे सहेली है अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए हेल्लो कहाँ और दोनों एक दुसरे की फॅमिली के बारे मैं पूछने लगे पहली बार मिले थे तो शायद उन दोनों के पास जैसे शब्द ही नहीं थे एक दूसरे से बात करने के और दोनों छुप छुप के एक दुसरे की नज़रें चुराए एक दूसरे को देखे जा रहे थे फिर उपासना ने अभिमन्यु से गाना सुनने का आग्रह किया और अभिमन्यु ने गिटार लाने को कहा माहूल बहुत खुशनुमा सा हो गया था क्युकी सभी को बताया गया था अभिमन्यु बहुत अच्चा गाता है
अभिमन्यु नी गाना गाना शुरू किया तो मनो महॊल जैसे थम सा गया वक़्त वहीँ रुक सा गया था मंजरी मुस्कुरा कर अभिमन्यु को देखे जा रही थी कभीकभी जब दोनो की नज़रें मिलती थी मंजरी को कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था और वो बहुत खुश थी उसे समझ नहीं आ रहा था आखिर आज उसे हो क्या गया है सब कुछ इतना ख़ूबसूरत क्यों लग रहा है सभी ने कुछ न कुछ सुनाया समा जैसे बांध सा गया था मंजरी ने अपने एक कविता सुनायी जो अभिमन्यु को बहुत पसंद आयी उसने चुपके से मंजरी से कहा बहुत खुबसूरत आप लिखती है अपनी आँखों की तरहा तभी अचानक फ़ोन के गंटी बजी और मंजरी की मम्मी का फ़ोन आया बहुत देर हो गयी है जल्दी घर आ जाना मंजरी ने घड़ी देखी ग्यारह बज चुके थे उसने उपासना से कहा और जल्दी से अपनी प्लेट मैं खाना लगाया मंजरी ने खाना खाया और घर जाने के लिए उपासना को कहा उपासना ने कहा भैया छोड़ आयेंगे और अभिमन्यु से जाने के लिए कहा दोनों पैदल पैदल घर के लिए निकल पडे अभिमन्यु बहुत बात करता था वो कुछ न कुछ पूछे जा रहा था और मंजरी तेज क़दमों से अपने घर आने का इंतज़ार कर रही थी मंजरी का घर आ गया और उसने कहा मेरा घर वो सामने वाला है पीले रंग का अभिमन्यु ने कहा फिर तो बहुत करीब है और मुस्कुराने लगा मंजरी ने घर का दरवाजा खटखटाया और सामने उसकी माँ थी उसने अभिमन्यु का परिचय करवाया यह उपासना का भाई है माँ ने उसे भीतर आने के लिए कहा पर उसने फिर कभी कहा कर नमस्ते कर ली मंजरी ने उसे धन्यवाद कहा और बई बोल कर घर के अन्दर आ गयी
आज वो बहुत खुश थी और कुशी का करण नहीं समझ पा रही थी बार बार उसके आँखों के सामने अभिमन्यु का मुस्कुराता सा चेहरा घूम रहा था , पहली बार में ही उसे वो पसंद आ गया था , ऐसा ही कुछ हाल वहां अभिमन्यु का भी था ,यही सोचते सोचते पता नहीं कब मंजरी के आंख लग गयी और सो सो गयी ,देखा सुबहा हो चुकी है वो जल्दी जल्दी उठी घडी देखी टाइम बहुत हो चुका था क्लास के लिए लेट हो रही थी जल्दी जल्दी तैयार हुए तब तक उपासना आ चुकी थी उसने आवाज़ दी मंजरी क्लास के लिये देर हो रही है मंजरी ने कहां हाँ बस आ गयी और फिर दोनों बातें करती हुए अपनी यूनिवर्सिटी के क्लास के लिए चल दी रास्ते मे उपासना ने बताया अभिमन्यु भैया तेरी बहुत तारीफ कर रहे थॆ काश तू मेरी भाभी बन जाये मंजरी ने पागल है क्या कह कर मुस्कुरा दिया
मंज़री बाजार के लिए जा रही थी अचानक से उसने सामने से अभिमन्यु को आते देखा पहले सोचा हेल्लो बोल दूं पर नहीं बोल पाई इतने मैं अभिमन्यु सामने आ गया और उसके हेल्लो मंजरी बोल दिया उसने जबाब दिया हेल्लो और चलने लगी अभिमन्यु भी उसकेसाथ साथ चलने लगा ,मंजरी को समझ नहीं आ राहा था क्या करे , तभी खमोशी तोडते हुए अभिमन्यु ने कहा मुझे तुम बहुत अच्छी लगी हो क्या तुम मेरे दोस्त बनोगी मंज़री ने पलभर सोचा और हाँ कर दी दोनों एक रेस्टोरेंट मैं गयॆ और कॉफ़ी पीते पीते बहुत सारी बातें की -बातें मनो ख़तम ही होने को नहीं आ रही थी ,चलते चलते अभिमन्यु ने अपना मोबाइल नो मंज़री को दिया ,फिर धीरे धीरे बातों का सिलसिला चलने लगा और दोनों अपने -अपने घर वापस आ गयॆ .
अभिमन्यु को मंजरी ने रिंग कर अपना मोबाइल नो दिया पलट कर अभिमन्यु फ़ोन आ गया हेल्लो करते ही ढेर सारी बातों का सिलसिला शुरू खो गया , दोनों रोज़ बहुत सारी बातें किया करते थे और उन बातों का कभी अंत नहीं होता था , छोटी -छोटी बात एक दुसरे को बताना और अपने सपनो के घर की बातें दोनों अपनी आँखों में सजाने लगे देखते ही देखते यह रिश्ता इतना मजबूत हो गया जो कभी टूट नहीं सकता था ..
तभी अचानक से वक़्त ने करवट ली अभिमन्यु की जॉब लग गयी थी और उसे मुंबई जाना पडा फिर भी जब टाइम मिलता दोनों बहुत सारी बातें करते थे दूरी ने उनकी चाहत को और भी घहरा बना दिया दोनों जन्मो जन्मो तक साथ निभाने की बात करते थे .
अचानक से वक़्त ने करवट बदली मंज़री की बड़ी बहेन की एक कार दुर्घटना मैं मृत्यु हो गयी उसका एक साल का छोटा सा मासूम बेटा था , कुछ वक़्त मंज़री उसे अपने साथ ले आयी उसका ख़याल रखने लगी और अभिमन्यु को फ़ोन करना कम कर दिया पूरा दिन वो मानव की देख भाल मैं निकला देती थी मानव अपने माँ को याद करके बहुत रोता था , धीरे धीरे वह मंज़री के करीब आ गया और दोनों एक दुसरे के साथ खुश रहते थे मंज़री अभिमन्यु को फ़ोन करने का सोच कर भूल जाती थी धीरे धीरे अब दोनों के बीच झगडे शुरू हो गए
अभिमन्यु समझ नहीं पा रहा था आखिर क्या करे दूर रहकर उसे नहीं पता था की अचानक से ऐसा क्या हो गया क्यों मंज़री अब पहले के तरहा उसे बात नहीं करती जब ज्यदा परेशान होने लगा तो वो छुट्टी लेकर मंजरी से मिलने आ गया पर मंजरी मानव को लेकर उसके पिता के पास गयी थी उनके तबियात अचानक से ख़राब हो गयी थी और उनका मानव से मिलने का बहुत मन था , मंज़री निकली ही थी की अभिमन्यु उसके घर आ गया उसने भीतर आकर मंज़री की माँ से नमस्ते की और सामने पडी कुर्सी पर बैठ गया और मंज़री के बारे में पूछने लगा मंजरी के पिता जी भी आ गए दोनों अभिमन्यु से बात करने लगे इसी बीच उन्होंने मंज़री की बहेन की दुर्घटना की बात की और उसे बताया उन दोनों ने मंज़री के शादी उसके जीजा जी के साथ तय कर दी है , अभिमन्यु के सारे सपने जैसे टूट गयॆ वो बुझे मनं से बाहर चला गया और मंज़री पर गुस्सा होने लगा क्यों उसने उसे नहीं बताया इतना बड़ा फैसला उसने बिना उसे बताये कर लिया और वो वापस उसी दिन मुंबई चला गया ,
मंजरी ने वापस आकर जब यह जाना अभिमन्यु आया था उसने तुरंत उसका फ़ोन मिलाया पर अभिमन्यु ने फ़ोन उठा कर उससे अपने सरॆ रिश्ते ख़तम हों आज से बोल दिया मंज़री को समझ नहीं आया वो अपने कमरे मैं चली गयी और रोने लगी उसका दिल ही टूट गया उसने कभी सोचा भी नहीं था के ऐसा मोड़ भी आ सकता है दोनों की प्रेम कहानी में
मंज़री रोज़ रोज़ अभिमन्यु को फ़ोन करती थी और वो उससे कभी बात नहीं करता था ऐसे ही टाइम गुजरता चला गया और मंज़री मानव देखभाल करने मैं व्यस्थ होती चली गयी
जाए और अपने जीजा जी से विवहा कर ले मंज़री यह सब सुन कर बस खडी रह गयी उसे समझ नहीं आया यह क्या कह दिया उसके पिता ने उसके सरे सपने जैसे आँखों के सामने टूट ते नज़र आ रहे थे ,वो किसी को कुछ बताये भी तो क्या अभिमन्यु तो इतना बेरुखा सा व्यबहार कर रहा था
मंज़री के पिता के तबियत बिगडती जा रही थी मंज़री ने पल भर को मानव को देखा और हाँ कर दी अपने दिल मैं सारी ख्वाहिशों और सपनो को मार दिया अब वो किसी और की पत्नी और माँ बन चुकी थी और अपनी ही बहेन के घर शादी करके आ चुकी थी
अर्जुन ने मंज़री को कभी अपनी पत्नी के रूप मैं कभी नहीं अपनाया एक दिन अचानक अर्जुन की हार्ट अटैक से चल बसा और मानव की ज़िम्मेदारी पूरी तरहा से मंज़री कन्धे पर आ पडी उसने अर्जुन के स्थान पर ज्वाइन कर लिया और मानव की देखभाल करने लगी और खुद को भूल सी गयी , मानव भी उसे बहुत प्यार करता था पर उसे उसकी माँ के ख़ामोशी जो मंज़री ने कभी नहीं बताई नज़र आने लगी वो अक्सर अपनी माँ बहुत सारे सवाल पूछता था पर मंज़री कुछ जवाब नहीं देती थी हाँ कभी कभी अपनी नम आँखों को जरूर पोंछती थी , बताती भी तो क्या पता नहीं कहाँ अभिमन्यु होगा और फिर उसने शादी कर ली थी तो अब किस अधिकार से अभिमन्यु को मिलती या बात करती ./
मानव अपनी माँ के अनकही सी ख़ामोशी को अब समझने लग गया था वो सत्रहा बरस का था और अपने उम्र सेबहुत समझदार और बहुत होनहार बच्चा था , उसने मंजरी के जाने के बाद उसके सामन की छानबीन शुरू कर दी अचानक से उसे एक दबी हुई डायरी नज़र आयी उसने निकल कर पढ़ना शुरू किया और उसकी आँखों से आँशु लगातार वहे जा रहे थॆ उसे अपनी माँ के ख़ामोशी का राज़ पता चल चुका था उसके दिल में अपनी माँ का स्थान बहुत उचा हो गया था
मानव ने उपासना का नंबर निकला और मिला कर सारी बात बताई और अभिमन्यु का नंबर लिया , और खुद ही चुपचाप से ,मंज़री के नंबर मिस्ड कॉल दी उधर से अभिमन्यु ने नंबर मिलाया तो पल भर मैं मंज़री की आवाज़ सुन कर थम सा गया था एक खुशी भी थी और एक गुस्सा भी था पर प्यार अभी भी कम नहीं हुआ था ,वो दोनों केदिल मैं आज भी वैसे ही ज़िंदा था , मज़री मायुस सी अभिमन्यु से मिलकर जाने लगी थी , इतने मैं सामने से मानव आया और उसने अपनी माँ का हाथ थम कर कहा बहुत भाग लिए आप दोनों एक दूसरे से अब और नहीं मंज़री भीगी आँखों से मानव को देखे जा रही थी उसका छोटा सा बेटा इतना बड़ा हो गया था ,उसने अभिमन्यु की सारी नाराज़गी दूर कर दी थी ,अभिमन्यु की आँखों से आंशू लगातार बहे जा रहे थे ,उसने मंज़री की बात क्यों नहीं सूनी क्यों वो अपने कश्मकश मैं उलझा रहा क्यों नहीं उसने वापस आकर मिलने की कोशिश कि ,मंज़री की भीगी आँखों को पोछते हुए अभिमन्यु ने गले से लगा लिया मंज़री और मानव को और तीनो रोने लगे और मंज़री की कशमकश का अंत हो चुका था ,तीनो मुस्कुराते हुए घर की तरफ निकल पड़े
Saturday, 10 August 2013
वक़्त
दो पल वक़्त यु पडा था कप में चाये की तरहा
वो भी यु ही कब का पडा पडा सोच रहा था
कब मुझे कोई इस्तेमाल करेगा सोच रहा था
फिर वो पुरानी यादों मे खो गया पल भर के लिए
सोचा एक वो वक़्त जब मैं कम पड़ जाता था
आज मैं पड़ा हूँ किसी को मेरी ज़रुरत ही नहीं
बचपन
मुस्कुराता फूल सा होता है बचपन
हर फ़िक्र हर बात से अनजाना होता है बचपन
दिल खॊल कर खिलखिलाता होता है बचपन
न आज की फिक्र न कल का सोचता है बचपन
चंद सिक्कों में आसमान खरीदने के ख्वाहिश होता है बचपन
मस्तमौला अल्हड़पन का नाम होता है बचपन
ना कोई डर ना किसी चिंता से परिचित होता है बचपन
मासूम की खिलखिलाती मुस्कान होता है बचपन
Friday, 9 August 2013
तीज
याद तो घर की आज बहुत आयी वो सावन का फूलों से सजा झूला
वो हाथों मे मेहंदी की खुशबू
हाथों मे सजी कांच की हरी चूड़ियाँ
वो घेबर और गुलगुलो का स्वाद
माँ की आज आती है बहुत याद
बचपन हर त्यौहार को उलास से मनाता है
यॊवन मे उल्लास उसका और बड जाता है
फिर एहसास जिम्मेदारी का उसे थोड़ा घटाता
पर बेटी के आने से खुशियों का मौसम फिर आता है
आज मैंने अपनी बेटी मैं खुद को फिर से पा लिया है
उसके साथ अपना बचपन फिर पा लिया है
बहुत ख़ूबसूरत तोहफा भगवान का बेटी है
Wednesday, 7 August 2013
यादों का मौसम
दिल मैं फिर आज यादों का भंबर कहीं उठा है
इक चेहरा तेरा फिर कहीं छुपा कहीं है
तकिये में मुह छुपाये यू तो रोये हैं कई बार
आज फिर नम आँखों ने याद तुझे किया है
कई बार तेरे आने की आहट का इंतज़ार किया है
फिर आज मेरे मन के मौसम ने याद तुझे किया है
कशमकश दिल मैं है बहुत आज जब याद किया है
क्यों तुमने एक बार भी पलट के नहीं देखा है
मैंने तो हर आहट को तेरा ही नाम दिया है
बदलता हुआ तेरी याद का यह मौसम भी है
जो सबन कभी भादों की तरह बदला नहीं है
एक याद का रंग है जो कभी बदला भी नहीं है
लो फिर आज दिल मैं यादों का भबर कहीं उठा है
दिल मैं फिर आज यादों का भंबर कहीं उठा है
इक चेहरा तेरा फिर कहीं छुपा कहीं है
तकिये में मुह छुपाये यू तो रोये हैं कई बार
आज फिर नम आँखों ने याद तुझे किया है
कई बार तेरे आने की आहट का इंतज़ार किया है
फिर आज मेरे मन के मौसम ने याद तुझे किया है
कशमकश दिल मैं है बहुत आज जब याद किया है
क्यों तुमने एक बार भी पलट के नहीं देखा है
मैंने तो हर आहट को तेरा ही नाम दिया है
बदलता हुआ तेरी याद का यह मौसम भी है
जो सबन कभी भादों की तरह बदला नहीं है
एक याद का रंग है जो कभी बदला भी नहीं है
लो फिर आज दिल मैं यादों का भबर कहीं उठा है
Tuesday, 6 August 2013
दो पल का सुकून नहीं हासिल ज़िन्दगी में
लोग सपनो का झुरमुट साथ लिये चलते हैं
रुकने का वक़्त किसी के पास नहीं हे
और वक़्त को मुट्ठी में लेने की बात करते हैं
लोग सपनो का झुरमुट साथ लिये चलते हैं
रुकने का वक़्त किसी के पास नहीं हे
और वक़्त को मुट्ठी में लेने की बात करते हैं
सपना
सपने हमेशा पास मेरे रहे हैं
कभी तेरे और कभी मेरे रहे हैं
वो आज भी ऒझल से पर पास मेरे हैं
कल तक थे मेरे आज साथ तेरे हैं
मैं तेरे सपनो मैं कहीं गुम हुआ हूँ
आज मैं अपनी आँख मैं तेरा सपना
और अपने सपने मैं तेरा ही सपना देखता हूँ
कभी तेरे और कभी मेरे रहे हैं
वो आज भी ऒझल से पर पास मेरे हैं
कल तक थे मेरे आज साथ तेरे हैं
मैं तेरे सपनो मैं कहीं गुम हुआ हूँ
आज मैं अपनी आँख मैं तेरा सपना
और अपने सपने मैं तेरा ही सपना देखता हूँ
बचपन
खिलखिलाता मासूम सा होता है बचपन
निश्छल निर्मल कोमल सा होता है बचपन
गुड्डे गुड़ियों के साथ खेलता सा होता बचपन
तोतली सी बोलियों से दिल जीतता सा बचपन
हजारों रंगों को देख कर पाने का बचपन
चाँद तारो को हाथों मैं पकड़ने की चाहत सा बचपन
बहुत मधुर बहुत उज्जबल सा होता है बचपन
कदम कदम चलकर फिर गिर कर संभलने सा बचपन
हम उसके बाद कभी ज़िंदा ही नहीं हुए हैं
यूँ तो ज़िन्दगी दिन रात सासें लेती रही है
दिन भी हुए हुई रात भी है पर वो लम्हे ही नहीं हैं
हम सदियों से तेरी याद मैं सोये ही नहीं हैं
चन्द लम्हे सिर्फ लम्हे ही थे वो लम्हे ज़िन्दगी
ज़िन्दगी आज भी वहीँ रुकी सी खडी है ज़िन्दगी
बेजान बेवजह बहती सांस से ज़िन्दगी