मुंसिफ़

लफ़्ज़ों के साथ इंसाफ़ करने की अदद कोशिश...

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It is too bad to be too good

Wednesday, 7 August 2013

यादों का मौसम

दिल मैं फिर आज यादों का भंबर कहीं उठा  है
इक चेहरा तेरा फिर कहीं छुपा  कहीं है
तकिये में मुह छुपाये यू तो रोये हैं कई बार
आज फिर नम आँखों ने याद तुझे किया है
कई बार तेरे आने की  आहट का इंतज़ार किया है
फिर आज मेरे मन के मौसम ने याद तुझे किया है
कशमकश दिल मैं है बहुत आज जब याद किया है
क्यों तुमने एक बार भी पलट के नहीं देखा है
मैंने तो हर आहट को तेरा ही नाम दिया है
बदलता हुआ तेरी याद का यह  मौसम भी है
जो सबन कभी भादों की तरह बदला नहीं है
एक याद का रंग है जो कभी बदला भी नहीं है
लो फिर आज दिल मैं यादों का भबर कहीं उठा है

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