मुंसिफ़

लफ़्ज़ों के साथ इंसाफ़ करने की अदद कोशिश...

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It is too bad to be too good

Tuesday, 6 August 2013

 

 एक बेटी की डायरी

आँगन मैं मेरे एक नन्ही सी परी  आई है
संग हजारो रंग वो साथ अपने लाई है
मैं माँ तो पहले भी थी एक बेटे की
पर अब लगता है जैसे पूरी सी हूँ अभी
बेटियाँ बहुत खूबसूरत   तोहफा हैं भगवान् का
बहुत खुश हूँ आज पाकर उसे मैं
लगता है जैसे फिर से मैं जी उठी हूँ
उसमें अपना सा बचपन कहीं पाया है
उसने फिर से एक बच्चा वापस मुझे बनाया है
क्यों लोग बेटियों से डरते हैं क्यों उनकी निर्मम हत्या करते हैं
क्यों वो खुशियों को पाने से डरते हैं
यह वो भगवान् की दी हुयी ख़ूबसूरत से मूरत हैं
जो सिर्फ खुशियाँ और रंग देती हैं आँगन मैं हो जिसके
वो बहुत खुश नसीब बेटियाँ होना शान के बात है
उन पिताओ से पूछो कितना चाहती हैं बेटियाँ
आज के समय मैं चाँद पर भी जाती हैं बेटियाँ

आज न रोको उन्हे आने से एस धरती पर
एक घर नहीं दो दो घर सबारती हैं बेटियाँ
फिर क्यों बिना देखे बिना महसूस किये
खुद अपने के माँ बाप मिटाते हैं बेटियाँ
क्यों उनके खमॊश चीखों को नहीं सुन पते हैं माँ और पापा
जो कहती है मुझे आने दो माँ पापा मुझे नहीं जाना
मैं आपको खुशियाँ दूंगी मुझे आने दो
मुझे मत रोको मुझे आने दो मुझे आने दो
मुझे नहीं जाना वापस उस अंधरे मैं
मुझे डर लगता है मेरी  आवाज़ सुन लॊ
मुझे वापस नहीं जाना मैं तुम्हारा ही  अंश हूँ
मैं तुम्हारी ही  बुलाई गयी परी हूँ
मुझे अपना लो मुझे वापस नहीं जाना
मुझे वापस नहीं जाना नहीं जाना
मेरे आवाज़ क्यों नहीं सुनते
मुझे क्यों नहीं अपनाते मुझे क्यों नहीं बुलाना
मैं बेटी हूँ तो क्या मैं आपका अंश नहीं
भाई की तरहा मैं भी आपका अंश हूँ
मुझे कब तक यही दर्द देंगे मेरे अपने माँ और पापा
कब होगा जब लोग बेटियों को सुन पयेंगे
गर्व मैं भी हम आपको महसूस करते हैं सुनते हैं
अपने हे वजूद को मिटने के बात जब वो करते हैं
हम अपने ही लोगों से  अपनी हे मौत के बात सुनते हैं
कब तक माँ पापा आप यही करेंगे
कितनी परियां बिना मिले अपनों दूर हैं
एक बार कोशिश आप सब भी करो
आप अपने इस समाज से कहो
कब बदलेगा कब बदलेगा आखिर कब बदलेगा
कब हमें भी भाई के बराबर का अधिकार मिलेगा
 

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