मुंसिफ़

लफ़्ज़ों के साथ इंसाफ़ करने की अदद कोशिश...

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It is too bad to be too good

Saturday, 12 October 2013


एक खमॊश मासून की बेदना 




एक खमॊश सी चीख एक मासून सी परी की बेदना
फिर क्यों बिना देखे बिना महसूस किये
खुद अपने ही  के माँ बाप मिटाते हैं बेटियाँ
क्यों उनकी  खमॊश चीखों को नहीं सुन पते हैं माँ और पापा
जो कहती है मुझे आने दो माँ पापा मुझे नहीं जाना
मैं आपको खुशियाँ दूंगी मुझे आने दो
मुझे मत रोको मुझे आने दो मुझे आने दो
मुझे नहीं जाना वापस उस अंधरे मैं
मुझे डर लगता है मेरी  आवाज़ सुन लॊ
मुझे वापस नहीं जाना मैं तुम्हारा ही  अंश हूँ
मैं तुम्हारी ही  बुलाई गयी परी हूँ
मुझे अपना लो मुझे वापस नहीं जाना
मुझे वापस नहीं जाना नहीं जाना
मेरी  आवाज़ क्यों नहीं सुनते
मुझे क्यों नहीं अपनाते मुझे क्यों नहीं बुलाना
मैं बेटी हूँ तो क्या मैं आपका अंश नहीं हूँ
भाई की तरहा मैं भी आपका अंश ही हूँ
मुझे कब तक यही दर्द देंगे मेरे अपने माँ और पापा
कब होगा जब लोग बेटियों को सुन पयेंगे
गर्व में भी मैं आपको महसूस करती हूँ सुनती हूँ
अपने होकर जब मेरे  वजूद को मिटने की  बात करते हो
कब तक माँ पापा आप यही करोगे
कितनी परियां बिना मिले अपनों से दूरजाती रहेंगी
एक बार कोशिश आप सब भी करो
आप अपने इस समाज से कहो
कब बदलेगा कब बदलेगा आखिर कब बदलेगा
कब हमें भी भाई के बराबर का अधिकार मिलेगा
आप देवी की पूजा तो नौ दिन तक करते हो
क्या आप सब मिलकर नौ बेटियों की भ्रूण हत्या रोक सकते हैं
कोशिश आप करोगे तभी हमें न्यायॆ मिलेगा
आपकी सोच बदल सकती है हमारा अस्तिव मिटने से .. 

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