कुछ शायराना पल
दुनिया की रिवायतों मैं शिकायत भी शामिल है
तुझे है शिकवा है तो गिला नहीं शिकायतें मुझसे इस जहाँ को भी हैं
तुझसे शिकायत करे तो करे कैसे
तेरे वक़्त पर हक़ तेरा भी नहीं है
तेरे आने कि आहट के इंतज़ार ने कभी सोने न दिया
वो वक़्त था कभी हमारा जिसे हमने जाने न दिया .
पाँव मैं छाले है और हाथ मैं खंजर है
नसीब है ऐसा कि शिकायत ही नहीं है
बहुत हुआ रूठना अब मान भी जाओ
मुझसे मनाया नहीं जाता तुमसे माना नहीं जाता
बगावतें करना चलन था उसका
कभी रिश्तों से कभी खुद से बगावत करता गया
तुम खुद चला कर आ सकते हो तो आ जाओ
मेरे घर केरास्ते मैं कहीं कही कशा नहीं है
पत्थरों से डरते हैं आप कैसे इंसान है
इंसान पत्थर है पत्थर फिर भी बदलते हैं
चंद साँसों के लिए सिसकते हुए रिश्तों को पाया है
खुद अपनों को परायों से भी जयदा गैर पाया है
मजहबों ने चैन से किसी को कभी जीने न दिया
सियासत के लिए वो रोटियां इंसानो की चिताओं पर सैंकते रहे
मजहबों ने चैन से किसी को कभी जीने न दिया
सियासत के लिए वो रोटियां इंसानो की चिताओं पर सैंकते रहे
किसी मासूम बच्चे की हंसी से पाक कोई मजहब हुआ है कोई
तुम उसी मासूम की आँखों से आंशू बहाते चले गए
चार पल चांदनी के तुम्हारी हुमारे पास पड़ें हैं
तुम एस कदर गए ही शहर की फिर शहर न हुई
कौन सा आइना है जिसे तुम देखते हो
मेरे आईने मैं झलक तुम्हारी ही मिलती है
साथ- साथ चलकर उसने यह कह दिया
चलो रास्ते अपने- अपने तलाशते हैं
यादें जब भी याद आ जाती है एक सुकून सा दिल को दे जाती हैं
तुम कहकर भी नहीं आते वो बिना कहे ही आ जाती हैं
वो अपना सा अजनबी बनकर हमेशा साथ रहा
साथ रखकर भी वो अक्सर दूर ही रहा
वो अपना सा अजनबी बनकर हमेशा साथ रहा
साथ रखकर भी वो अक्सर दूर ही रहा
हम गैर भी अगर कह दें तो कह दें कैसे
घर अब भी उसने दिलमें बनाये रखा है
तुम्हारे पैरो के निशाँ यहाँ पर आज भी मिलते हैं
पर तुम न जाने किस देश मैं बसते हो अब मग
वो खुशबू तुम्हारी जो मुझसे आज भी आती है अक्सर
वो मेरे जनमों की अमानत है जो पास आती है अक्सर
मैं तलाश मैं अपनी यु घूमता फिरता हूँ
क्या वजूद है मैं क्या मांगता रहता हूँ
हाथों को उठा कर वो जब भी कोई दुआ मांगती है
अजनबी इंसान से फिर जान पहचान उम्मीद जागती है
तुम्हारे साथ साथ मेरी काजल से सजी आँखें भी कहीं खोई हैं
यह आँखें सिर्फ आंशू से भरी हैं और भर कर अक्सर बहती ही रही हैं
तुझे है शिकवा है तो गिला नहीं शिकायतें मुझसे इस जहाँ को भी हैं
तुझसे शिकायत करे तो करे कैसे
तेरे वक़्त पर हक़ तेरा भी नहीं है
तेरे आने कि आहट के इंतज़ार ने कभी सोने न दिया
वो वक़्त था कभी हमारा जिसे हमने जाने न दिया .
पाँव मैं छाले है और हाथ मैं खंजर है
नसीब है ऐसा कि शिकायत ही नहीं है
बहुत हुआ रूठना अब मान भी जाओ
मुझसे मनाया नहीं जाता तुमसे माना नहीं जाता
बगावतें करना चलन था उसका
कभी रिश्तों से कभी खुद से बगावत करता गया
तुम खुद चला कर आ सकते हो तो आ जाओ
मेरे घर केरास्ते मैं कहीं कही कशा नहीं है
पत्थरों से डरते हैं आप कैसे इंसान है
इंसान पत्थर है पत्थर फिर भी बदलते हैं
चंद साँसों के लिए सिसकते हुए रिश्तों को पाया है
खुद अपनों को परायों से भी जयदा गैर पाया है
मजहबों ने चैन से किसी को कभी जीने न दिया
सियासत के लिए वो रोटियां इंसानो की चिताओं पर सैंकते रहे
मजहबों ने चैन से किसी को कभी जीने न दिया
सियासत के लिए वो रोटियां इंसानो की चिताओं पर सैंकते रहे
किसी मासूम बच्चे की हंसी से पाक कोई मजहब हुआ है कोई
तुम उसी मासूम की आँखों से आंशू बहाते चले गए
चार पल चांदनी के तुम्हारी हुमारे पास पड़ें हैं
तुम एस कदर गए ही शहर की फिर शहर न हुई
कौन सा आइना है जिसे तुम देखते हो
मेरे आईने मैं झलक तुम्हारी ही मिलती है
साथ- साथ चलकर उसने यह कह दिया
चलो रास्ते अपने- अपने तलाशते हैं
यादें जब भी याद आ जाती है एक सुकून सा दिल को दे जाती हैं
तुम कहकर भी नहीं आते वो बिना कहे ही आ जाती हैं
वो अपना सा अजनबी बनकर हमेशा साथ रहा
साथ रखकर भी वो अक्सर दूर ही रहा
वो अपना सा अजनबी बनकर हमेशा साथ रहा
साथ रखकर भी वो अक्सर दूर ही रहा
हम गैर भी अगर कह दें तो कह दें कैसे
घर अब भी उसने दिलमें बनाये रखा है
तुम्हारे पैरो के निशाँ यहाँ पर आज भी मिलते हैं
पर तुम न जाने किस देश मैं बसते हो अब मग
वो खुशबू तुम्हारी जो मुझसे आज भी आती है अक्सर
वो मेरे जनमों की अमानत है जो पास आती है अक्सर
मैं तलाश मैं अपनी यु घूमता फिरता हूँ
क्या वजूद है मैं क्या मांगता रहता हूँ
हाथों को उठा कर वो जब भी कोई दुआ मांगती है
अजनबी इंसान से फिर जान पहचान उम्मीद जागती है
तुम्हारे साथ साथ मेरी काजल से सजी आँखें भी कहीं खोई हैं
यह आँखें सिर्फ आंशू से भरी हैं और भर कर अक्सर बहती ही रही हैं
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