मुंसिफ़

लफ़्ज़ों के साथ इंसाफ़ करने की अदद कोशिश...

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It is too bad to be too good

Wednesday 6 November 2013

छड़ भंगुर

वक़्त जैसे जैसे बदल रहा है उसी के साथ साथ मानवीय रिश्ते भी बदलने लगे हैं ,ज़रूरतें बड़ी हैं उमीदें बहुत जयदा हैं और सपनो की उड़ान बहुत बड़ी है हर क्षेत्र मैं प्रतिस्पर्दा ने मानवीय मूल्यों को बिकुल बदल दिया है या यह कहिये बहुत पीछे छोड़ दिया है हर कोई अपना -अपना और सिर्फ अपने बारे मैं हीसोच कर आगे बढ़ना चाहता है l रिश्तों के मायने बदले इंसानो की ज़रूरत के हिसाब से उन्हे अपनाया या छोड़ा जाने लगा है ,विवेक ,  बिस्वास ,प्यार , भरोसा ,आत्मीयत भावना ,अपनापन सब सिर्फ चंद शब्दों के नामहै जिनका अपना वजूद कुछ भी नहीं है l परिवार बिखर रहे हैं आज पति -पत्नी और वह  बाली ज़िन्दगी जयदा ख़ुशी से रास आ रही है बात स्त्री या पुरुष की नहीं बात दोनों की सोच मैं आये आज़ादी के मूल्यों के है किस हद्द तक आज़ादी ठीक है ,क्या अपने नैतक मूल्यों पर आज़ादी ठीक है और आज़ादी की सीमा कहाँ पर जाकर ख़तम होगी और उस आज़ादी का क्या परिणाम होगा और ऐसी आज़ादी किस काम की है , दोनों अपनी सोच का दायरा आपसी रिश्तों  का दायरा और सबसे बड़ी बात अपने रिश्ते केदायरे मैं दूरिया बड़ा रहे हैं , एक पारम्परिक सोच मैं रही स्त्री भी जब घर की चार दीवारी से बहार निकलती है तो उसे लगता है सारे बंधन और सारी रस्में तोड़ दे क्युकी खुद को आज़ाद और आधुनिक जो समझना है बिना यह सोचे की यह आज़ादी की नहीं उसकी अपने अस्तित्व को एक मज़ाक बनाने की सुरुवात है ,स्त्री या पुरुष दोनों   समाज की जरूरत हैं और हमेशा एक दूसरे के पूरक ही रहेंगे तो क्यों आज़ादी का सोचना एक सोच और आपसे समझ शायद जयदा महत्व रखती है  लोगों को धोखा प्यार और पैसा बस यही दायरा है ,दोनों ही कामकाजी है और  दोनों ही बहार की दुनिया मैं रहते हैं अपनी ज़रूरतें बड़ा ली है और अंतहीन सपने है झूठे वादे ,और भ्रम मैं जीना ,झूठे सपनो को साकार करने की चाहत अपने नैतिक मूल्यों से दूर नहीं ले जा रहे और कोई यह नहीं सोचना चाहता आखिर यह कब तक चलेगा और जब उसका अंत होगा फिर क्या होगा और यही से उसके डर की सुरुवात होती है क्युकी झूठ हमेशा डरता रहता है और उसकी उम्र का पता नहीं होता कब ख़तम हो जायेगी l औरसाथ साथ यही से सुरुवात होती हैं  मनोबिज्ञान की जो आज के टाइम मैं बहुत बड़ी समस्या बन कर उभर रहा है आज इतने सारे मनोचिकित्सक पैदा हो  गए है और उनकीसंख्या मैं दिन प्रतिदिन बृद्धि होना साबित करता है इंसान कितना कमज़ोर है झूठ मैं फंसा एक पंछी जो उसे बहार भी निकलना चाहता है और उसे अपने पिंजरे से भी प्यार है बास्तविकता देखना नहीं चाहता और झूठ मैं जीते जीते खुद से भी प्यार नहीं कर पता ,आज के  दौर मैं मानसिक तनाब,हार्ट अटॅक शुगर आदि ऐसी बीमारियां है जो बहुत कम उम्र मैं होने लगी हैं l परिवार के टूटने का सबसे जयदा जिसपर असर होता है वो होते हैं बच्चे जो कभी नहीं देखना चाहते के उनके मम्मी या पापा अलग रहे ,हर बच्चे का सपना होता है अपने मम्मी पापा का हाथ थामकर  चलना जो उसके सपनो के संसार का सबसे ख़ूबसूरत सपना होता है परिवार का मतलब और मायने ही समाप्त हो जाता है अगर एस तरह का जीवन है, क्युकी आपके साथ बच्चे भी जुड़े हैं उनके परवरिश और अच्छे संस्कार भी दिए जाने जरूरी है l जब पति पत्नीमें विवाद जनम लेता है उसका सबसे जयदा असर उस कोमल मंन  पर पड़ता है जिसके मिटटी अभी गीली है और उसे अपने शकल इख्तियार करना है  अगर सुरुवात ही ऐसी होगी तो क्या शकल बनेगी कल की यह सोचने बाली बात है , और यह भी सोचने वाली बात है अमेरिका जैसे आज़ाद देश भी परिवारिक मान्यताओं को स्वीकारने लगे हैं क्युकी उन लोगों ने आज़ाद रहकर उनके मूल्यों और ज़रूरतों को समझा है और आज उसे महत्व को स्वीकार किता है l आज जिसतरह के रिश्तों का चलन की सुरुवात हुयी है वो देखने मैं सपनीला ज़रूर लगता है पर असलियत मैं बहुत तकलीफ और दर्द ही देरहा है "लिवइन रिलेशन " आज़ादी का मापदंड नहीं है ,शादी एक बंधन है जिसमें परिवार और समाज दोनों का ही दखल होता है और उसेसे ही रिश्ते बंधन मैं बंधे रहते हैं और एक खुश हाल ज़िन्दगी को जीते हैं  उनका असर समाज  और मानव दोनों पर होता है क्युकी   मानव एक समाजिक  प्राणी है जिसमें भाबनाएं है सुख दुःख का एहसास है ,सोचने समझने कीशक्ति है हर पल हर बात मैं उसे परिबार की ज़रुरत महसूस होती है और बनाबटी और झूठे रिश्तों का वजूद कभी नहीं होता वो सिर्फ एक मिथ्या ही हैं और आगे भी वही बने रहेंगे जो इनके महत्व को समझ पता है वही ज़िन्दगी मैं मूल्यों को धारण कर पता है l आपके आज के   नैतिक चरित्र कल आपके बच्चों सफलता या असफला असफलता का कारण बनता है l तो अच्छा है वक़्त बदले , तरक्की हो खुश हाली हो और परिवारों मैं एकता और अपनापन बना रहे वही आज की सबसे बड़ी पूंजी है और इसे  सम्भालना आज की  आवाज़ है l

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