मुंसिफ़

लफ़्ज़ों के साथ इंसाफ़ करने की अदद कोशिश...

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It is too bad to be too good

Saturday 2 November 2013

मशीन नहीं इंसान है वह


वो एक ममता की मूरत ,दया की सूरत ,बेहद सहज , सरल ,नम्र ,विनम्रता का गहना पहने अपना प्यार  लुटाने वाली देवी ही बनी सबको अच्छी लगती है जिस रूप की समाज  और हर कोई कामना करता वह  कैसे बनी रहे आज के बदलते माहोल ने उसे कमकाजीबनया उसे भी पुरुषों के साथ बहार कन्धा से कन्धा मिलाकार उन्ही के सामान काम काज़ करना   और हालत  ने महिलाओ और लड़कियों के व्यबहार को एकदम बदलकर रख दिया है ,तेज़ तरार ,गली गलोज ,बोल्ड ,कामकाजी ,महत्वाकांछी बना दिया है और फिर भी यही आशा करना वो घर और बहार दोनों दायत्वों का पालन सहजता से करे आजकल के बच्चे भी सुपर मोम के कांसेप्ट मैं विशवास रखते हैं उनकी का सबसे अलग हो उसे सब कुछ आना  चहिये और साथ ही उसकी ऑफिसियल लाइफ भी बहुत सफल हो ताकि वो अपने क्लास मैं इम्प्रैशन बना सकें ,पति को भी घर बहार साथ देनेवाली पत्नी चहिये जो हर फ्रंट पर उनको सहयोग और साथ दे और घर मैं सभी के लिए अपनी ज़िम्मेदारी को समझे , समाज भी उसीसे बहुत सारी  उमीदें रखता है ,एक हांड मॉस के पुतले को मशीनी नहीं बना दिया इतनी सारी उमीदों ने हर तरफ संगर्ष घरसे निकलते ही दुनिया बदल जाती महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों यौन शोषण ,छेड़छाड़ ,दहेज़ हत्या ,भूर्ण हत्या ,हॉनर कीलिंग इतने सारी विसमताओं ने आज अगर उसका व्यबहार बदल दिया है तो शिकायत क्यों है क्यों उसका यह रूप स्वीकार नहीं है आज समाज को आपने ही तो उसका रूप बदल दया है और अब आपको ही इतनी सारी शिकायतें हैं इतनी सारी ज़िम्मेदारियों मैं वो एक सहज इंसान कैसे बनी रहे बदलते हालत ने उसके  व्यबहार को बदला है उसने खुद को नहीं बदला वो आज भी वही है पर उसके लिए उसे एक  इंसान समझो मशीन नहीं --यह दोहरा चेहरा नहीं समाज का

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