संविधान और कानून सबको एक बराबर मानता हैं। पुरुष हो या स्त्री कपड़े दोनों को शालीन पहनने चाहिये लेकिन कम कपड़ो की परिभाषा क्या होती हैं मुझे आज तक नहीं समझ आया। अगर टी शर्ट , जींस , शॉर्ट्स लड़कियों के लिये नहीं हैं तो उनको परिधान के रूप में इस देश के कानून से बेन करवा दे , ना लड़का पहने ना लड़की . संविधान बनाते समय इस बात को ध्यान में क्यूँ नहीं रखा की भारत में महिला भी रहती हैं जिनको क्या पहनना हैं इसका फैसला जनता , नेता और मोरल पुलिस करती हैं। कम से कम उनको संविधान में एक पूरा अध्याय इस पर लिखना चाहिये था की कपड़ो में क्या और कितना लम्बा होना चाहिए किस उम्र की स्त्री को क्या पहनना चाहिये।
सिर्फ यही करण देना पर्याप्त नहीं होगा ज़रुरत आज की सोच को बदलने की बात लड़कियों को समझाने की नहीं हैं क्यूंकि सदियों से लडकियां पर्दे में रही हैं और फिर भी वेश्या , विधवा , देव दासी और अनगिनत रूपों में उनका यौन शोषण हुआ हैं।
हमें अपनी सोच और नजरिया बदलना होगा और यह सब अब बातों या सुझाबों से नहीं बदला जा सकता ज़रुरत कानून मैं संसोधन की है कानून में बदलाब आना चाहियें सिर्फ कानून का डर और ऐसे मामलों का जल्दी से जल्दी सुनवाई हो कर फैसलें दिए जाने से ही कुछ सुधार हो सकता है फांसी या उम्र कैद से कम सज़ा नहीं होना चाइये सिर्फ सजा खौंफ ही इसे ख़तम कर सकता है
सिर्फ यही करण देना पर्याप्त नहीं होगा ज़रुरत आज की सोच को बदलने की बात लड़कियों को समझाने की नहीं हैं क्यूंकि सदियों से लडकियां पर्दे में रही हैं और फिर भी वेश्या , विधवा , देव दासी और अनगिनत रूपों में उनका यौन शोषण हुआ हैं।
हमें अपनी सोच और नजरिया बदलना होगा और यह सब अब बातों या सुझाबों से नहीं बदला जा सकता ज़रुरत कानून मैं संसोधन की है कानून में बदलाब आना चाहियें सिर्फ कानून का डर और ऐसे मामलों का जल्दी से जल्दी सुनवाई हो कर फैसलें दिए जाने से ही कुछ सुधार हो सकता है फांसी या उम्र कैद से कम सज़ा नहीं होना चाइये सिर्फ सजा खौंफ ही इसे ख़तम कर सकता है
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