Aurat
न जाने कितनी चोट दिल पर लगी न जाने किस गम मैं खोकर वो वापस मुस्कुराई है
इस धरती पर सीता न जाने कितनी बार सताई है,हर बार अपनों ने ही छला उसको ,
अपनों के खातिर फिर भी घायल होकर भी नम आँखों से वापस वो मुस्कुराई है ,
प्यार करना और फिर उसी प्यार के लिए चुप -चाप आंसू बाहना यही बाद में महान कहलाई है
अपनी ख़ुशी ,अपने सपने ,अपनी ज़िन्दगी कुछ भी नहीं वो यह सब अपने मायके छोड़ कर आयी है
इस धरती पर सीता न जाने कितनी बार सताई है,हर बार अपनों ने ही छला उसको ,
अपनों के खातिर फिर भी घायल होकर भी नम आँखों से वापस वो मुस्कुराई है ,
प्यार करना और फिर उसी प्यार के लिए चुप -चाप आंसू बाहना यही बाद में महान कहलाई है
अपनी ख़ुशी ,अपने सपने ,अपनी ज़िन्दगी कुछ भी नहीं वो यह सब अपने मायके छोड़ कर आयी है