मुंसिफ़

लफ़्ज़ों के साथ इंसाफ़ करने की अदद कोशिश...

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It is too bad to be too good

Saturday, 18 January 2014

Aurat

न जाने कितनी चोट दिल पर लगी न जाने किस गम मैं खोकर वो वापस मुस्कुराई है
इस धरती पर सीता न जाने कितनी बार सताई है,हर बार अपनों ने  ही छला उसको ,
अपनों के खातिर फिर भी  घायल होकर भी  नम  आँखों से वापस वो मुस्कुराई है ,
प्यार करना और फिर उसी प्यार के लिए चुप -चाप आंसू बाहना यही बाद में  महान कहलाई है
अपनी ख़ुशी ,अपने  सपने ,अपनी ज़िन्दगी  कुछ भी नहीं वो यह सब अपने मायके छोड़ कर आयी है

1 Comments:

Blogger पूनम श्रीवास्तव said...

shaayad ham aurato ki yahi niyti hai aur jaane badlegi kbhi ya nahi------

26 August 2015 at 23:14  

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