मुंसिफ़

लफ़्ज़ों के साथ इंसाफ़ करने की अदद कोशिश...

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It is too bad to be too good

Saturday 21 September 2013

मैं अभी रुका नहीं , मैं अभी थका नहीं ,मैं अभी  ठहेरा नहीं
 मेट्रो की ज़िन्दगी रफ़्तारचाहती है सपनो का कारवां अभी रुका नहीं

Monday 16 September 2013

i am sorry 2 say bt if it would hv happened wid his daughter den he had awarded the accused of the courage award and as a politician aur as a celebrity he ll arrange bites session or many more press conferences suggestion programs to the people how pamper deir girl child wht to wear n how to live what kinds of frds we need to make n where to go wht kind of wrk dey hv to do .............according to the perspective VAKEEL SAHEB ....der should nt be any single co-ed school n collage .

May be our ancestress were wrong because dey hd a dream to wrk together (men& women) for the progress of our country .I thnk VAKEEL SAHEB forget abt the freedom fighters there were many women's lyk Kanaklata Barua,Vijaya Lakshmi Pandit, Indira Gandhi, Padmaja Naidu, Sucheta Kriplani, Sarojini Naidu,Kasturba Gandhi, Kasturba Gandhi, Rani Lakshmi Bai, Kittur Rani Chennamma and many more unknown personalities give deir precious contributions to our country so dat we are able to speak,live and make our carrier freely .

Friday 6 September 2013

.कहो गर्व से हम सब  हिन्दुस्तानी

आज देश मैं सुधार के नाम पर हर पार्टी एक दुसरे पर आरोप लगती फिर रही है कोई कांग्रेस को कोई बीजेपी को और सपा और कोई बसपा और आम आदमी पार्टी तो खुदको भगवान् मान बैठी है वो सबको  को गलत और चोर मानती है  और सबसे बढ़िया माध्यम सोशल नेटवर्किंग साइट्स का ढूंढ़  निकला  है जिसमें हर कोई कुछ ख़ास खबर सबूत के साथ पैदा  करने पर लगा है एक खबर चली और जो जो जिस पार्टी को पसंद करता है वो उसे शेयर करेगा या लाइक करेगा या उसे और चटपटा बनाकर उसमें अपने मित्रों को उसमें  tagged करना बस यही ज़िम्मेदारी है कोई कुछ करना ही नहीं चाहता मूक -बधिर दर्शक बन इंतज़ार मैं रहते है अब नया क्या आया न तो हम अपने मत की ताकत को पहचान रहे है न ही हम उसका सही उपयोग करना चाहते हैं तो बदलाब की उम्मीद किस से कर रहे है वो अपने आप प्रगट होगा क्या हम अब भी सोयॆ हुए हैं इस उम्मीद मैं शायद भगवान् का कोई अवतार आयेगा और सुधार हो जाएगा कमाल  है हमरी सोच और कमाल है हमारी सहेन शक्ति .कहो गर्व से हम सब  हिन्दुस्तानी

आज के भागम भाग ज़िन्दगी मैं जहाँ जरूरतें बढती जा रही हैं माँ का कामकाजी होना एक जरूरत हो गयी है और कामकाजी माँ जयदा अच्चा टाइम का मैनेजमेंट कर लेती है और आजकल जो चल रह है उसके साथ भी चलती है आज कल बच्चे बहुत होशियार हो गयॆ हैं उन्हें कामकाजी माँ पसंद है सुपर माँ के कांसेप्ट मैं बिलीव करते हैं उनकी माँ सब कुछ जानती हो सरे काम उसे आते हो वो कार भी ड्राइव करे अच्छा खाना भी बनाना आता हो वो उसकी दोस्त भी हो और सही भी है जब दोनों एक दुसरे को अच्छे से जानते हो तभी एक अच्चा रिश्ता बनता है और माँ और बच्चे दोस्त हो तो यह दुनिया का सबसे अच्छा बंधन होगा और कामकाजी माँ टाइम मैनेजमेंट अच्छे से करना जानती है और शायद खुद पर भी ध्यान देती है जब खुद अपना धयान देगी खुद फिट रहेगी तभी सबका ध्यान और सबको कुश रख पायेगी जबकि हाउस वाइफ अक्सर घर के लिए करते करते खुद को अवॉयड कने लगती है और रोज़ रोज़ वही दिनचर्या होने के कारन शायद अपने लिए जीना भूल जाते हैं .

Tuesday 3 September 2013

  राजनीती और सफ़ेद रंग कब इसे छोड़ेगा
                   

राजनीती और सफ़ेद रंग का बहुत गहरा रिश्ता है आज हर पार्टी सफ़ेद रंग को अपनी शान समझती है दुसरे के उसी सफ़ेद रंग पर कीचड उछालना अपना फ़र्ज़ उन्हे पता है जनता उनके आपस के झगड़े मैं उलझी रहगी हमें चटखारे मरने के लिए चटपटी खबरें पसंद हैं और उसको हमारी इसी मानसिकता का फायदा उठा कर वोट मिलते हैं ,जितना प्रचार यह एक दुसरे के छवि को मैला करने मे लगती है उतना काम अगर अपने अपने छेत्र में कर लें तो शायद वोट के लिए इनती मेहनत करने से भी बच जायें पर नहीं इनका दामन सफ़ेद और दुसरे पर कीचड जरूर उछालेंगे पर यह हम जनता को कब समझ आयेगा यह हमें चुना लगा रहे है आपस मैं यह सब एक ही हैं फैसला हमें करना है क्या सही क्या गलत बाद मैं रोने से अच्छा है जाग जाना और सही चुनाव करना


हम खुद ज़िम्मेदार हैं अपने हालात के लिए फिर सरकार के नाम पर पार्टी केनाम पर क्यों रोते हैं अगर पार्टी के जगह अच्छे प्रित्याशी क्यों नहीं चुनते जब तक इनका वर्चस्ब समाप्त नहीं किया जाएगा यह यु ही राज करती रहेंगी आजकल दो हे बिज़नस सफल है राजनीती और आस्था की दूकान वाकी सब बहुत पीछे रह गए

Sunday 1 September 2013




  वहा  रे कानून वहा रे उसके रखवाले


आखिर कब तक हम लकीर के फ़कीर बने रहेंगे कब तक अपराधी नाबालिग और बुजुर्ग मने जाते रहेंगे अपराधी की मनोदशा और अपराध की संगीनता पर ध्यान क्यों नही दिया जाता बदलाब समाये की मांग होता है आज के महॊल मैं कानून मैं संसोधन  की  जरूरत महसूस की जा रही है हमारा देश इतना कमज़ोर है की कानून मे संसोधन नहीं कर सकता फिर किस बात का सिस्टम और किस बात की सरकार  है और किस बात का संविधान का लचीला होना जिसमें .एक अपराधी जिसने इतना संगीन अपराध किया उसे यह कह कर नाबालिग है छोड़ देना मजाक है उसने सबसे जयदा क्रूरता दिखाई उसे सिर्फ नाबालिग मान कर तीन साल की सजा सुनना बहुत गलत है न्यायाधीश गीतांजली को इसमें अपने विवेक का इंस्तेमाल करके न्याय करना चहिये था जो आनेवाले समाये मैं एक नजीर बन जाता पर उन्होंने भी वही अपने दायरे मैं और कानून की  हद्द मैं रहकर फैसला सुनाया उनका दायरे मैं रहना ज़रूरे है भले ही उस बच्ची के माँ बाप ज़िन्दगी भर इस दर्द  को झेलते रहेंगे अपराधी जो कहें करें उन्हे हर बात की छूट है पर कानून के रखवाले एक इंच न आगे और न पीछे सोचकर फैसला करेगे वो सारे नियम कानून मानेगे भले ही कितने अपराध और अपराधी बढते  रहे क्या मज़ाक है -और हम उसी अंधे कानून के आगे झुकते  रहेंगे वह रे कानून और वह रे उसके रखवाले आज अगर आवाज़ नहीं उठी तो कब आवाज़ उठेगी