खुद की पहचान खुद से
वो अक्सर दूसरो के लिए ही जीती है और अक्सर खुद को
ही भूल जाती है , अपने फ़र्ज़ मैं डूबी कभी ममता लुटाती है कभी सखा बन कर साथ निभाती है , जब ज़रुरत पडे वो चट्टान भी बन जाते है , राहगीर बनकर रहा भी दीखती है ,
कितने रूप है उसके कितने रंग हैं उसके वो हर पल सिर्फ बिना कुछ चाह के सिर्फ इस चाह मैं भागते भागते ज़िन्दगी गुजर जाती है .......क्यों वो अपने पल अपने लिए नहीं जी पाती क्यों उसे उसके लिए रेस्पेक्ट नहीं दी जाती क्यों हर बार उसे तोडा जाता है क्यों उसे कमज़ोर समझा जाता है ...वो एक औरत है एक माँ है एक बेटी एक दोस्त एक बाहेन है एक पत्नी है क्यों सिर्फ उसे एक जिस्म समझा जाता है क्यों इतने सारे रूप देखाई नहीं देते क्यों एक कमज़ोर नारी समझा जाता है ..आज बदलाब केज़रूरत है वक़्त बदल चुका है क्यों लोग अपने मानसिकता नहीं बदलते ...शायद जब तक खॊफ़ नहीं होगा तब तक गुन्हा नहीं रोक जा सकता है आज कानून मैं बदलाब के ज़रुरत है कब तक वही अंग्रेजो के ज़माने का कानून चलता रहेगा कब तक एक औरत एक बेटी अपनी अस्मिता लुटाती रहेगी हम सबको आवाज़ उठानी चहियॆ अगर सारी नारी शक्ति अपने रोज़गार पर जाना रोक दें तो सरकार को मजबूर होना पडेगा और सिर्फ यही एक रास्ता है नारी शक्ति जाग जाये तो क्या मुमकिन नहीं हो सकता है सिर्फ अपने शक्ति और एकता को साबित करने के ज़रुरत है औरत कल भी शक्ति थी और आज भी है , हम बदलाब चाहते हैं तो कदम सबको साथ उठाना पड़ेगा .
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