मुंसिफ़

लफ़्ज़ों के साथ इंसाफ़ करने की अदद कोशिश...

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It is too bad to be too good

Tuesday, 20 January 2009

दोस्ती...

मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला,
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला।

घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे,
बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला।

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था,
फिर उसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला।

ख़ुला की इतनी बड़ी क़ायनात में मैंने,
बस एक शख़्स को मांगा, मुझे वही न मिला।

बहुत अजीब है ये क़ुरबतों की दूरी भी,
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला।

(उर्दू अदब की अज़ीम शख़्सियत बशीर बद्र के अ`शआर)

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6 Comments:

Blogger Nishant Kukreja said...

INSAAF KE DAAMAN PE LAHU KISKO DIKHAUN

MUNSIF HAI GUNHEGAAR, MAIN KUCHH SOCH RAHA HOON

AMITA,

GHAZAL KA SAFAR ZINDA RAKHNE KE LIYE, BAHUT BAHUT BADHAI

NISHANT

22 January 2009 at 05:41  
Blogger पूनम श्रीवास्तव said...

Amita ji,
itnee sundar,bhavpoorna gazalen padhvane ke liye sadhuvad.kabhee mere blog par aiye.apka svagat hai.
Poonam

22 January 2009 at 06:43  
Blogger abdul hai said...

best haa amita jee ya gazal

24 January 2009 at 12:44  
Anonymous Anonymous said...

"तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था,
फिर उसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला।"

ये ख़ूबसूरत पंक्तियां हम तक पहुंचाने के लिए शुक्रिया...

29 May 2009 at 07:03  
Blogger Amita said...

thx a lots

4 July 2009 at 10:29  
Blogger Unknown said...

bahut hee sundar likhaa hai

9 February 2010 at 09:33  

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