दोस्ती...
मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला,
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला।
घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे,
बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला।
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था,
फिर उसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला।
ख़ुला की इतनी बड़ी क़ायनात में मैंने,
बस एक शख़्स को मांगा, मुझे वही न मिला।
बहुत अजीब है ये क़ुरबतों की दूरी भी,
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला।
(उर्दू अदब की अज़ीम शख़्सियत बशीर बद्र के अ`शआर)
Labels: दोस्ती...बशीर बद्र
6 Comments:
INSAAF KE DAAMAN PE LAHU KISKO DIKHAUN
MUNSIF HAI GUNHEGAAR, MAIN KUCHH SOCH RAHA HOON
AMITA,
GHAZAL KA SAFAR ZINDA RAKHNE KE LIYE, BAHUT BAHUT BADHAI
NISHANT
Amita ji,
itnee sundar,bhavpoorna gazalen padhvane ke liye sadhuvad.kabhee mere blog par aiye.apka svagat hai.
Poonam
best haa amita jee ya gazal
"तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था,
फिर उसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला।"
ये ख़ूबसूरत पंक्तियां हम तक पहुंचाने के लिए शुक्रिया...
thx a lots
bahut hee sundar likhaa hai
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home