मुंसिफ़

लफ़्ज़ों के साथ इंसाफ़ करने की अदद कोशिश...

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It is too bad to be too good

Thursday, 8 January 2009

चलो यूं ही सही...

आती-जाती हर मुहब्बत है, चलो यूं ही सही,
जब तलक है ख़ूबसूरत है चलो यूं ही सही।

हम कहां के देवता हैं बेवफ़ा वो है तो क्या,
घर में कोई घर की ज़ीनत है, चलो यूं ही सही।

वो नहीं तो कोई तो होगा कहीं उसकी तरह,
जिस्म में जब तक बरारत है, चलो यूं ही सही।

मैले हो जाते हैं रिश्ते भी लिबासों की तरह,
दोस्ती हर दिन की मेहनत है, चलो यूं ही सही।

भूल थी अपनी, फ़रिश्ता आदमी में ढूंढना,
आदमी में आदमीयत है, चलो यूं ही सही।

जैसी होनी चाहिए थी, वैसी तो दुनिया नहीं,
दुनियादारी भी ज़रूरत है, चलो यूं ही सही।

(जनाब निदा फ़ाज़ली के अ`शआर)

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1 Comments:

Blogger Sanjeet Tripathi said...

शानदार।
शुक्रिया पढ़वाने के लिए।
शुभकामनाओं के साथ स्वागत है हिंदी ब्लॉगजगत में

13 January 2009 at 02:58  

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