चलो यूं ही सही...
आती-जाती हर मुहब्बत है, चलो यूं ही सही,
जब तलक है ख़ूबसूरत है चलो यूं ही सही।
हम कहां के देवता हैं बेवफ़ा वो है तो क्या,
घर में कोई घर की ज़ीनत है, चलो यूं ही सही।
वो नहीं तो कोई तो होगा कहीं उसकी तरह,
जिस्म में जब तक बरारत है, चलो यूं ही सही।
मैले हो जाते हैं रिश्ते भी लिबासों की तरह,
दोस्ती हर दिन की मेहनत है, चलो यूं ही सही।
भूल थी अपनी, फ़रिश्ता आदमी में ढूंढना,
आदमी में आदमीयत है, चलो यूं ही सही।
जैसी होनी चाहिए थी, वैसी तो दुनिया नहीं,
दुनियादारी भी ज़रूरत है, चलो यूं ही सही।
(जनाब निदा फ़ाज़ली के अ`शआर)
जब तलक है ख़ूबसूरत है चलो यूं ही सही।
हम कहां के देवता हैं बेवफ़ा वो है तो क्या,
घर में कोई घर की ज़ीनत है, चलो यूं ही सही।
वो नहीं तो कोई तो होगा कहीं उसकी तरह,
जिस्म में जब तक बरारत है, चलो यूं ही सही।
मैले हो जाते हैं रिश्ते भी लिबासों की तरह,
दोस्ती हर दिन की मेहनत है, चलो यूं ही सही।
भूल थी अपनी, फ़रिश्ता आदमी में ढूंढना,
आदमी में आदमीयत है, चलो यूं ही सही।
जैसी होनी चाहिए थी, वैसी तो दुनिया नहीं,
दुनियादारी भी ज़रूरत है, चलो यूं ही सही।
(जनाब निदा फ़ाज़ली के अ`शआर)
Labels: चलो यूं ही सही...निदा फ़ाज़ली
1 Comments:
शानदार।
शुक्रिया पढ़वाने के लिए।
शुभकामनाओं के साथ स्वागत है हिंदी ब्लॉगजगत में
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