घर से निकले...
घर से निकले तो हो, सोचा भी किधर जाओगे,
हर तरफ़ तेज़ हवाएं हैं बिखर जाओगे।
इतना आसान नहीं लफ़्ज़ों पे भरोसा करना,
घर की दहलीज़ पुकारेगी जिधर जाओगे।
शाम होते ही सिमट जाएंगे सारे रस्ते,
बहते दरिया में जहां होगे ठहर जाओगे।
हर नए शहर में कुछ रातें कड़ी होती हैं,
छत से दीवारें जुदा होंगी तो डर जाओगे।
पहले हर चीज़ नज़र आएगी बेमानी-सी,
और फिर अपनी ही नज़रों से उतर जाओगे।
(जनाब निदा फ़ाज़ली के अ`शआर)
Labels: घर से निकले...
2 Comments:
Nice Asharr doing great
तबीयत ही मिली ... के बाद आपने
अपनी मर्जी के....
तन्हा तन्हा ....
चलो यूँ ही.....
और घर से निकले ....
ग़ज़लों से इस महफ़िल को और जवां कर दिया, ज़रा आहिस्ता चलिए सुरूर बढ़ चला है।
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home