मुंसिफ़

लफ़्ज़ों के साथ इंसाफ़ करने की अदद कोशिश...

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It is too bad to be too good

Tuesday, 20 January 2009

आंखों में रहा...

आंखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा,
किश्ती के मुसाफ़िर ने समंदर नहीं देखा।

बेवक़्त अगर जाऊंगा सब चौंक पड़ेंगे,
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा।

जिस दिन से चला हूं मेरी मंज़िल पे नज़र है,
आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा।

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं,
तुमने मेरा कांटों भरा बिस्तर नहीं देखा।

पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला,
मैं मोम हूं, उसने मुझे छूकर नहीं देखा।

(उर्दू अदब की अज़ीम शख़्सियत बशीर बद्र के अ`शआर)

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1 Comments:

Blogger Arti said...

Bashir Badr...the greatest of our times, I think.Thanks for sharing...

17 February 2009 at 03:30  

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