ख़ामोशी...
ख़ामोश हो क्यों, दाद-ए-जफ़ा (अत्याचार को समर्थन) क्यों नहीं देते,
बिस्मिल (घायल) हो तो क़ातिल को दुआ क्यों नहीं देते।
वहशत का सबब रौज़ने-ज़िंदा (जीवित छिद्र) तो नहीं है,
महरोमा-व-अंजुम (चांद-तारों) को बुझा क्यों नहीं देते।
इक ये भी तो अंदाज़े-इलाजे-ग़मे जां है,
ऐ चरागारों, दर्द बढ़ा क्यों नहीं देते।
मुंसिफ़ हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे ?
मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यों नहीं देते ?
रहज़न (राह में लूटने वाले) हो तो हाज़िर है मताए-दिलो-जां (दिल-जान की शक्ति) भी,
रहबर (साथ चलने वाला पथिक) हो तो मंज़िल का पता क्यों नहीं देते।
क्या बीत गई अबके `फ़राज़` अहले-चमन पर,
याराने-क़फ़स (क़ैद में रहने वाले) मुझको सदा क्यों नहीं देते।
उर्दू अदब के हस्ताक्षर जनाब अहमद फ़राज़ के चंद शेरों से ब्लॉग की दुनिया में आगाज़ किया है, जो मुझे पसंद हैं। उम्मीद है आपको भी पसंद आएंगे...और पसंद आएं तो कमेंट्स लाज़िम हैं, क्योंकि आगे हिम्मत बनी रहेगी।
Labels: ख़ामोशी..., गज़ल... जनाब अहमद फ़राज़
5 Comments:
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। ग़ज़ल बेहतर लगी। इसी तरह लिखती रहिए। यही जज़्बा आपके लफ़्ज़ों की ताक़त से आपको मुंसिफ़ बना सकता है।
Best Wishes.
Pankaj Tripathi.
khoob.. bahut khoob.
i just luv urdu poetry.
Ghalib,Faiz, Faraz, momin, iqbal.. list is endless
bahut umdaa aagaz hai !!!!!!!!
मुझे तो आपका आगाज़ पसंद आया। सच कहूँ तो कुछ ही शब्दों में लगा कहीं जबरदस्त जगह आ गया।
your gazal is nice.I appreciate your Gazal.Welcome to the blog world
Thanks
thx a lots
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